कोरोना महामारी देश के कुछ हिस्सा में अपना पूरा सबाब पर बा, ताण्डव मचवले बा, के कब एकरा चपेट में आ जाइ केहू नइखे जानत, एहतियात बरतल त जरूरी बटले बा, साथे साथ टीकाकरण भी चल रहल बा, उहो लगावल समय के जरूरत बा ।
एह धरा धाम पर कुछउ स्थायी नइखे, जे आइल बा ओके जहिं के परी। हं समय अनिश्चित बा। ई कोरोना भी जाइ, जहिं के परी, समय के पंक्षी कहाँ रुके वाला उ त उड़ते रही, अइसन समय में आइल सतुआन, उत्सवधर्मिता त हमनीके नश नश में बसेला, परिस्थिति कइसनों रहो उत्सव मनावल ना छोड़ेनी जा, बरिस दिन के बाद आइल बा सतुआन, खरवांस के समाप्ति आ आज से मंगल काम के शुरुआत हो जाई, परब ह त मनावहिं के परी, भले सादगी से मनो बाकि मनी जरूर । त फेर पढ़ीं पुरान सतुआन पर लिखल आलेख । तारकेश्वर राय तारक जी के लिखल ई आलेखः
बिकाश क चक्र के साथ ताल मेल बइठावे खातिर धउरत बर्तमान समाज के लगे से न जाने का का टूट गइल गिर गइल भुला गइल कुछ अनजान में कुछ मजबूरी में । कुछेक खातिर अफ़सोस बा त कुछ के अहसास मात्र भी नइखे । भोजपुरिया बधार में तयोहारन क कवनो कमीं नइखे जरूरत बा त ओके मनावे खातिर खाली इच्छा आकांछा के । जब सुरुज देव से निकलल तपिश से प्राणी मात्र क मस्तिष्क गरमाये लागेला आ खेतिहर किसान के मेहनत क फल अनाज के राश के रूप में खरिहान में आँखि के सोझा लउके लागेला त भोजपुरिया बधार में एगो परव दस्तक
देला जेके “सतुवान” के रूप में जानेला लोक समाज । इहे उ मौषम ह जब भगवान भास्कर आपन घर के बदल देलन, मीन राशि से मकर राशि में प्रवेश क जालन । महींनन से चलत खरवांस क पूर्णाहुति हो जाला आ शादी बियाह जइसन मांगलिक काम के श्री गणेश हो जाला । बर्तमान में तेजी से बदलत जिनिगी के साथ शहरीकरण भी सतुवान जइसन परवन के काल के गर्भ में भेजे में खूब सहभागिता निभावेला । शहर में त ई पर्व खत्मे बा ग्रामीण अंचल में भी एह पर्व के महत्ता पर गरहन साफ लउकता । हमनीके पुरखा पुरनिया क सोच आज के बैज्ञानिक लोग के सोच से कम ना रहे बढ़त गर्मी के प्रकोप के कम करे खातिर एह परब में सबेरे नहा के हो सके त गंगा नदी ताल भा इनारा कल पर, सतमेंझरा माने जौ, रहिला आदि के पीस के बनल सतुवा के नून पियाज हरियर मरीचा अचार आ टटका आम के टिकोरा के चटनी के साथ खाये के रीत ह भोजपुरिया बधार में । गुर सतुवा के साथ भी पसन परे त रउवा खा सकतानी । धनिया पोदीना भी एकर सुवाद के बढ़ा देला । ढेर ताम झाम के जरूरत नइखे ना आगी चाही ना बिसेस बरतन ना पाक कला में पारंगतता के भी जरूरत नइखे । सबसे बढ़ बात गमछा कपड़ा में भी ई भोजन आसानी से तैयार हो जाला । जरूरत बा त खाली इच्छा शक्ति के । आम के पन्ना के साथ सतुवा पियल जाला एह मौका प । शरीर के ठंढाई त मिलबे करेला परिवारीक बंधन भी मजबूत होला । पूरा परिवार के सहभागिता लउकेला एह मौका प । खेती पर निर्भरता कम होखला के चलते ई परब के मनावे में कमी लउकता । कभी कभी शहर में हर समान उपलब्ध भी ना हो पावेला । धन्यवाद के पात्र बा शोशल मीडिया जेकर पहुंच गावं गिराव तक हो गइल बा जेकरा से हमनी जइसन आदमी के पता चल जाला की आज सतुवान ह । ना त ई कंक्रीट के जंगल में का बसंत आ का शरद । ई परब के मनावल जरूरी बा शहरी जीवन यापन करे वालन के बतावे खातिर की होली, दिवाली, दशहरा, छठ के अलावा भी बहुते परब तेवहार होला आ अइसनो डिश होला जेकरा के बनावे में दु मिनट से भी कम समय लागेला। बता भी उहे सकेला जेकर सोर गावँ से जुड़ल बा आपन रीती रिवाज संस्कार प फक्र बा देखले बा जियले बा ।

गुरुग्राम, हरियाणा